राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, सहारनपुर द्वारा बच्चों के लिये एक ई- पत्रिका

Wednesday, February 6, 2013

प्रेरक व्यक्तित्व : ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम



एक नाविक के बेटे की अपनी मेंहनत और बुद्धिमता के कारण भारत के सबसे बड़े पद तक पहुचने की कहानी जो ये बताती है अगर आदमी ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं | डॉ कलाम सिर्फ भारत के सर्वोच्च नागरिक ही नहीं रहे वरन भारत के सबसे सरल नागरिक भी हैं | उनका मिशन २०२० निश्चित रूप से भारत को महाशक्ति के रूप में ही नहीं बल्कि उसके नागरिकों को वो न्यूनतम सुविधाएँ भी मुहैया करा सकता है जो अच्छे जीवन के लिए जरूरी हैं | आइये उनसे प्रेरणा लें और अपने देश के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा करे |





अव्‍वल पकीर जेनुलाब्‍दीन अब्‍दुल कलाम को आमतौर पर डॉ. ए.पी.जी. अब्‍दुल कलाम के नाम से जाना जाता है। वह रामेश्‍वरम, तमिलनाडु के एक कम पढ़े लिखे नाविक के बेटे हैं और भारत गणराज के 11 वें राष्‍ट्रपति हैं। यह अत्‍यन्‍त महत्‍वूपर्ण है कि राष्‍ट्रपति भवन को सुशोभित करने वाले वह पहले वैज्ञानिक हैं। वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत की तक़दीर बदलने का काम अपने जिम्‍मे लिया । वह एक कल्‍पनाशील व्यक्ति हैं और उनकी कल्‍पना है कि भारत को एक विकसित देश बनाया जाए। अपनी कल्‍पना को असली रूप देने के लिए उन्होंने अपनी योजना को अपनी तीन पुस्‍तकों में स्‍पष्‍ट किया है: भारत 2020 नई सहस्राब्दि के लिए एक दृष्टि, विंग्‍स ऑफ फ़ायर: एपीजी अब्‍दल कलाम की आत्मकथा और इग्नाइटेड माइंड्स:अनलीशिंग दि पावर विदइन इंडिया।

डॉ कलाम का जन्म 15 अक्तूबर 1931 को हुआ था। उनका बचपन भौतिक और भावनात्मक रूप से सुरक्षित था। उनकी आत्म-कथा विंग्स ऑफ फ़ायर में उन्होंने लिखा है : मेरा जन्म मद्रास राज्य के रामेश्वरम के द्वीप नगर में एक मध्य श्रेणी तामिल परिवार में हुआ । मेरे पिता जेनुलाब्द्दीन के पास ना तो औपचारिक शिक्षा थी और ना ही ज्यादा धन, लेकिन इन अभावो के होते हुए भी वह त्वरित बुद्धि और आत्मा की सच्ची उदारता रखते थे । मेरी मां, आशीअम्मा उनकी एक आर्दश साथी थीं। मुझे याद नहीं आता कि हर रोज वह कितने लोगों को खाना खिलाती थीं, लेकिन मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ कि हमारे परिवार के सब सदस्यों की तुलना में खाना खाने वालों में बाहर के लोगों की संख्या कहीं ज्यादा होती थी। हम अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे और मेरे आडम्बर-हीन पिता  सब गैर ज़रूरी आराम और विलास-वस्तुओं से बचते थे । मेरे पिता हमारी जरूरतों के अनुसार खाने, दवाओं और वस्त्रों की व्यवस्था करते थे । वास्तव में, मैं कह सकता हूं कि मेरा बचपन भौतिक और भावनात्मक दोनों रूपों से अत्यन्त सुरक्षित था । एक धार्मिक पुरूष के रूप में डॉ. कलाम के पिता की बहुत इज्ज़त थी। डॉ. कलाम ने स्वीकार किया है कि उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों और उनके विचारों पर उनके मांता पिता और अन्य शुभचिन्तकों का बहुत प्रभाव था। उनकी आत्म-कथा से उद्धृत करते हुए -प्रत्येक बच्चे का जन्म कुछ विशेषताओं के साथ विशिष्ट सामाजिक आर्थिक और भावनात्मक वातावरण में होता है और प्राधिकारी व्यक्तियों द्वारा कुछ हद तक मार्ग में उसे प्रशिक्षित किया जाता है। मुझे ईमानदारी और आत्म-संयम अपने पिता से विरासत में मिले और मां से मैंने सीखा गहरी दया और अच्छाई में विश्वास | मेरे जीवन पर मेरे गहरे दोस्त अहमद जलालुद्दीन और चचेरे भाई शम्सुद्दीन का भारी प्रभाव हुआ | जमालुद्दीन और शम्सुद्दीन की गैर-स्कूली बुद्धिमत्ता इतनी अन्तर्दर्शी और अनकहे सन्देशों के प्रति अनुक्रियाशील थी कि बाद में प्रकट अपनी रचनात्मकता का श्रेय मैं बचपन में उनके साथ बिताए समय को निस्संकोच देता हूं

रामेश्वरम में प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के बाद, डॉ. कलाम शवार्टज़ हाई स्कूल, रामनाथपुरम में गये और वहां से उच्च शिक्षा के लिए त्रिचुरापल्ली गये | डॉ. कलाम ने लिखा : शवार्टज में शिक्षा पूरी करते समय मैं एक आत्म-विश्वासी लड़का था और सफल होने का इरादा लिए हुए था। आगे पढ़ाई करने का निर्णय चुटकी भर में ही ले लिया गया। उन दिनों, हमारे लिए व्यावसायिक शिक्षा के लिए संभावनाओं की जागरूकता उपलब्ध नहीं थी; उच्चतर शिक्षा का अर्थ केवल कालेज में जाना था।

सेंट जोज़िफ़ कालेज से बीएससी पास करने के बाद विमान-विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट  ऑफ टेक्नालोजी (MIT) में दाखिला लिया। एम आई टी से एक प्रशिक्षार्थी के रूप में वह एच ए एल बैगंलोर में गये | एयरोनाटिकल इंजीनियर के रूप में डॉ. कलाम के पास दो विकल्प थे संक्षेप में तकनीकी विकास एवं उत्पाद या डी टी डी एवं पी (वायु) रक्षा मंत्रालय या भारतीय वायुसेना में भरती होना। डॉ. कलाम ने डी टी डी एंड पी (वायु) के तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के रूप में 250 रूपये मासिक मूल वेतन पर कार्यभार संभाला। वायु सेना निदेशालय में काम करते हुए उन्हें अपने स्वप्न को पूरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने इंडियन कमेटी फ़ार स्पेस रिसर्च (INCOSPAR), जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) की पूर्वगामी थी में दाखिला लिया और इस प्रकार कलाम ने रॉकेट और मिसाइल टेक्नॉलोजी में अपना बहुचर्चित कैरियर आरंभ किया।

देश का राष्ट्रपति बनने से पहले, डॉ. कलाम ने अपने कैरियर को चार चरणों मे बांटा था। पहले चरण (1963-82) में उन्होंने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ काम किया। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन में उन्होंने विभिन्न पदों पर काम किया। फाइबर प्रबलित प्लास्टिक (FRP) कार्यकलाप आरंभ करने और कुछ समय  एयरोडाइनामिक्स और डिजाइन ग्रुप के साथ बिताने के बाद वह थुम्बा में सैटेलाइट लांचिंग वेहिकल टीम में शामिल हो गये | यहां उन्हें SLV-3 के लिए मिशन का प्रॉजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया। उन्होंने सैटेलाइट लांच वेहिकल टेक्नॉलोजी के विकास में और नियंत्रण, नोदन और एयरोडाइनामिक्स में विशेषज्ञता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। SLV-3 परियोजना ने, राहिणी (एक वैज्ञानिक सैटलाइट)को जुलाई 1980 में कक्षा में भेजने में सफलता प्राप्त की। भारत ने विभिन्न प्रकार के राकेट सिस्टम डिजाइन करने की योग्यता भी प्राप्त की। अपने कैरियर के पहले चरण पर टिप्पणी करते हुए डॉ. कलाम ने लिखा : यह मेरा पहला चरण था, जिसमें मैं ने तीन महान गुरूओं डॉ. विक्रम साराभाई, प्रो. सतीश धवन और डॉ. ब्रह्म प्रकाश से नेतृत्व करना सीखा। यह मेरे लिए सीखने और अर्जित करने का समय था



उनके कैरियर का दूसरा चरण तब शुरू हुआ जब 1982 में उन्होंने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)में पदभार ग्रहण किया। डी आर डी ओ के निदेशक के रूप में डॉ. कलाम को समाकलित निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) का कार्य सौंपा गया। उनके नेतृत्व में भारत सामरिक महत्व के प्रक्षेपण अस्त्र विकसित करने में सफल हुआ जैसे कि नाग ( एक टैंक रोधी निर्देशित मिसाइल), पृथ्वी ( भूमि से भूमि तक एक युद्धभूमि प्रक्षेपास्त्र), आकाश ( एक तेज, मध्यम रेंज भूमि से वायु तक प्रक्षेपास्त्र), त्रिशूल ( एक तीव्र प्रतिक्रिया भूमि से आकाश तक मिसाइल) और अग्नि (एक मध्यवर्ती रेंज प्रक्षेपास्त्र)। प्रक्षेपास्त्र टेक्नॉलोजी के क्षेत्र मे तीन नई प्रयोगशालाएं सुविधाएं स्थापित की गयीं | इस चरण के बारे में डॉ. कलाम ने लिखा : इस चरण के दौरान मैं अपनी बहुत सी सफलताओं और असफलताओं से गुजरा। मैं ने अपनी असफलताओं से शिक्षा ग्रहण की और उनका सामना करने के लिए अपने आपको हौसले के साथ दृढ़ बनाया। यह मेरा दूसरा चरण था जिसने मुझे असफलताओं को व्यवस्थित करने का महत्वपूर्ण पाठ सिखाया।“ भारत की रक्षा क्षमताओं में डॉ. कलाम का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

डॉ. कलाम ने अपने तीसरे चरण की पहचान एक अणु-अस्त्र देश बनने के भारत के मिशन के साथ भागीदारी के साथ की | इस मिशन को डी आर डी ओ और डी ए ई ने संयुक्त रूप से हाथ में लिया था और इसको सशस्त्र सेनाओं का सक्रिय सहयोग प्राप्त था। इस चरण के दौरान,डॉ. कलाम टी आई एफ ए सी के चेयरमैन के रूप में टेक्नॉलोजी दृष्टि 2020 और भारतीय सहस्रब्दि मिशन (IMM 2020) जोकि टेक्नॉलोजी दृष्टि और भारत की सुरक्षा चिन्ताओं का एक समाकलित रूपांतर है,  में भी शामिल हो गये । नवम्बर 1999 में डॉ. कलाम को भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया।


प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के पद छोड़ने के बाद उनका चौथा चरण आरंभ हुआ। प्रोफ़ेसर ऑफ टेक्नॉलोजी एंड सोसाइटल रूपांतरण के रूप में उन्होंने अन्ना विश्वविद्यालय चेन्नई में पदभार संभाला। अपने मिशन को पूरा करने के भाग के रूप में उन्होंने जवानों के हृदयों को प्रज्वलित करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य के लिए अगस्त 2003 से पहले देश के विभिन्न भागों में वह कम से कम 100,000 विद्यार्थियों तक पहुंचना चाहते थे । वह पहले ही 40,000 विद्यार्थियों से मिल चुके हैं। उनके चौथे चरण में अचानक एक मोड़ आया जिसकी शायद उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी। वह भारत के राष्ट्रपति बन गये |

वर्ष 1997 में डॉ. कलाम को भारत का उच्चतम नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न प्रदान किया गया ।

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