राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, सहारनपुर द्वारा बच्चों के लिये एक ई- पत्रिका

Sunday, May 12, 2013

मातृ दिवस पर योगेश छिबर सर की दिल को छूने वाली कविता


लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा ।

दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।

इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई अम्मा ।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई अम्मा ।

बाबू जी तो तनख़ा लाये
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।

बाबूजी थे छड़ी बेंत की
माखन और मलाई अम्मा।

बाबूजी के पांव दबा कर
सब तीरथ हो आई अम्मा।

नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, अम्मा।

सभी साड़ियां छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा।

अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई अम्मा ।

अलग हो गये घर में चूल्हे
देती रही दुहाई अम्मा ।

बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा ।

रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई अम्मा ।

लड़ते-सहते, लड़ते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।

बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा।

अम्मा से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई अम्मा ।

बेटे की कुर्सी है ऊंची,
पर उसकी ऊंचाई अम्मा ।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई अम्मा।

घर के शगुन सभी अम्मा से,
है घर की शहनाई अम्मा ।

सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई अम्मा ।
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